लोन न चुकाने वालो के अधिकार - Rights of Loan Defaulters in Hindi

आज आम इन्सान आगे बढ़ने के लिए काफी हद तक लोन पर dependent रहता है. परन्तु तब क्या जब आप लोन Repay करने में असमर्थ (Unable) हो अथवा आपका खाता NPA (Non Performing Asset) हो जाये. ऐसे में कई बार उचित मार्गदर्शन एवं जागरूकता के अभाव में ग्राहकों द्वारा गलत कदम भी उठाते हुए देखा गया है. Loan Repayment न कर पाने पर ग्राहकों के भी कुछ Legal Rights होते है जिनका उपयोग कर ग्राहक थोड़े दिन की मोहलत जरुर पा सकते है.

लोन न चुकाने वालो के अधिकार - Rights of Loan Defaulters in Hindi

अगर आपने किसी वजह से किसी एक लोन पर डिफॉल्ट कर दिया हो, तो ऐसा नहीं है कि लेंडर आप पर बोरिया-बिस्तर लेकर चढ़ जाए। ऐसे नियम हैं, जो उसकी ऐसी हरकत पर लगाम लगाते हैं।

1.नोटिस का अधिकार - डिफॉल्ट करने से आपके अधिकार छीने नहीं जा सकते और न ही इससे आप अपराधी बनते हैं। बैंकों को एक निर्धारित प्रोसेस का पालन कर अपनी बकाया रकम की वसूली के लिए आपकी एसेट्स पर कब्जा करने से पहले आपको लोन चुकाने का समय देना होता है। आमतौर परबैंक इस तरह की कार्रवाई सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट्स (सरफेसी एक्ट) (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002. also known as the SARFAESI Act) के तहत करते हैं।

अगर बॉरोअर का एकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) की कैटेगरी में डाला गया है, जहां पेमेंट 90 दिनों या इससे अधिक समय से बकाया है, तो लेंडर को पहले डिफॉल्टर को 60 दिन का नोटिस देना होता है। एसेट्स की बिक्री के लिए बैंक को 30 दिनों का पब्लिक नोटिस देना होता है जिसमें बिक्री की डिटेल्स होती हैं।

2.सही वैल्यू सुनिश्चित करने का अधिकार- अगर आप 60 दिनों के Notice period के दौरान अपनी बकाया रकम चुकाने या जवाब देने में असफल रहते हैं तो लेंडर अपनी रकम की वसूली के लिए आपकी प्रॉपर्टी की नीलामी शुरू कर देता है। हालांकि, ऐसा करने से पहले उसे एक अन्य नोटिस देना होता है जिसमें बैंक के वैल्युअर्स की ओर से आंकी गई एसेट्स की वैल्यू की जानकारी दी जाती है। इसके साथ ही इसमें रिजर्व प्राइस, नीलामी की तिथि और समय जैसी अन्य जानकारियां भी होती हैं। अगर प्रॉपर्टी की वैल्यू कम लगाई गई है तो बॉरोअर अपनी आपत्ति (Objection) दर्ज करा सकता है। वह अपनी ओर से कोई बेहतर ऑफर देकर अपनी आपत्ति को सही ठहरा सकता है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो बॉरोअर खुद से बेहतर प्राइस की पेशकश करने वाले संभावित बायर्स की खोज कर सकता है और उन्हें लेंडर से मिलवा सकता है।

3.बाकी रकम हासिल करना- आपकी एसेट पर लेंडर का कब्जा होने के बाद यह न सोचें कि वह आपके हाथ से पूरी तरह निकल गई। नीलामी की प्रक्रिया पर नजर रखें। इन दिनों यह आसान हो गया है क्योंकि ज्यादातर लेंडर्स ई-ऑक्शन करते हैं। लेंडर्स को अपनी बकाया रकम वसूलने के बाद बाकी बची किसी भी रकम को रिफंड करना होता है। बकाया रकम और नीलामी आयोजित करने के सभी खर्चों की वसूली के बाद बैंक को कानून के तहत बाकी बची रकम बॉरोअर को देनी होती है।

4.सुनवाई का अधिकार- Notice period के दौरान आप ऑथराइज्ड अधिकारी के सामने अपनी बात रख सकते हैं और उसे प्रॉपर्टी पर कब्जे के नोटिस को लेकर अपनी आपत्तियों की जानकारी दे सकते हैं। अधिकारी को सात दिनों के अंदर इसका जवाब देना होता है। अगर वह आपकी आपत्ति को खारिज करता है तो उसे इसके लिए वैध कारण बताने होंगे।

5.मानवीय व्यवहार का अधिकार- यह न भूलें कि बैंकों पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) का Control है और वे अपनी बकाया रकम की वसूली के लिए साहूकारों की तरह Behavior नहीं कर सकते। रिकवरी एजेंट्स के लोगों को प्रताड़ित करने की रिपोर्ट्स आने के बाद आरबीआई ने कुछ वर्ष पहले इस मुद्दे पर बैंकों को कड़ी फटकार लगाई थी। बैंकों ने भी कस्टमर्स के लिए अपने कोड ऑफ कमिटमेंट के तहत बेस्ट प्रैक्टिसेज का अपनी इच्छा से पालन करने का फैसला किया है।

एजेंट्स केवल बॉरोअर की पसंद वाले स्थान पर उनसे संपर्क कर सकते हैं। अगर बॉरोअर ने ऐसा कोई स्थान नहीं बताया तो एजेंट बॉरोअर के घर या कम करने की जगह पर जा सकते हैं। एजेंट्स को बॉरोअर की प्राइवेसी का ध्यान रखना होता है। वे केवल सुबह सात बजे से शाम सात बजे के बीच ही बॉरोअर के पास जा सकते हैं।